राजेश चौधरी, नवभारत टाइम्स | Feb 9, 2013, 05.30AM IST
नई दिल्ली।।
मेरिटल रेप के मामले में कानून में दी गई छूट के बदलाव को लेकर दाखिल याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह महिलाओं के मूल अधिकार में दखल है। महिला (पत्नी) की उम्र चाहे कोई भी हो, उसकी मर्जी के खिलाफ उसके साथ संबंध नहीं बनाया जा सकता। कानून में मेरिटल रेप के मामले को अपवाद के तौर पर रखा गया है और ऐसे मामले में पति के खिलाफ मुकदमा नहीं चलता। इस कानूनी प्रावधान में बदलाव होना चाहिए। इस मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी।
याचिकाकर्ता के वकील अरविंद जैन ने बताया कि याचिकाकर्ता की साढ़े 15 साल की बेटी घर से गायब हो गई थी। वह एक लड़के के साथ भाग गई थी। लड़की के पिता ने पुलिस को शिकायत की। लड़की बाद में बरामद हुई और लड़का पकड़ा गया। लड़की जब बरामद हुई, तब वह गर्भवती थी लेकिन वह अपने पिता के साथ नहीं जाना चाहती थी। उसे नारी निकेतन भेजा गया और वहां उसने बच्चे को जन्म दिया। इस मामले में लड़की के पिता की ओर से याचिका दायर कर कहा गया कि 15 साल से ऊपर की उम्र में पत्नी के साथ बनाए गए शारीरिक संबंध को रेप की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट में अरविंद जैन ने दलील दी कि रेप की परिभाषा में धारा-375 के तहत बताया गया है कि अगर 12 से 15 साल की उम्र की पत्नी के साथ रेप करता है, तो ऐसे मामले में दो साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। लेकिन अब कानून में बदलाव कर ऊपरी सीमा 16 साल कर दी गई है और सजा बढ़ा दी गई है। इस तरह 16 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ अगर उसका पति जबर्दस्ती संबंध बनाता है, तो वह रेप नहीं माना जाएगा। जबकि लड़की अगर शादीशुदा न हो और उसकी उम्र 18 साल से कम हो, तो उसकी मर्जी से भी संबंध बनाने पर उसे रेप माना जाएगा। उन्होंने दलील दी कि कानून में इस तरह के विरोधाभास हैं।
हालांकि इस दौरान अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून के तहत महिलाओं को प्रोटेक्शन मिला हुआ है और इसके तहत मुआवजा पाने, मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना या फिर सेक्सुअल प्रताड़ना के मामले में उसे प्रोटेक्शन है। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि महिला के संवैधानिक अधिकार का सवाल है। घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन काफी नहीं है।