Wednesday, September 29, 2010

बचपन से बलात्कार

“बच्चे राष्ट्र कि बहुमूल्य संपत्ति हैं, देश का भविष्य हैं, समाज के कर्णधार हैं”.........मगर. भारत में पिछले कुछ सालों से बच्चों के साथ दुष्कर्म, यौन शोषण और अमानवीय उत्पीड़न के मामलों में लगातार वृद्धि हुई (हो रही) है. जब परिवार के भीतर ही यौन शोषण की खतरनाक मानसिकता फल-फूल रही हो तो बाहर क्या उम्मीद की जा सकती है? बच्चे संबंधों (पिता से लेकर गुरु तक) की किसी भी विश्वास योग्य छत के नीचे सुरक्षित नहीं रह गए हैं. मीडिया में लगातार बढ़ते सेक्स और अश्लीलता ने समाज के बीमार दिमागों की यौन कुंठाओं को, निर्धन और अबोध बच्चों के यौन शोषण की ओर अग्रसर किया है. भारत में अभी तक बाल यौन शोषण के लिए सैंद्धांतिक रूप में कोई विशेष कानून नहीं है और जो प्रावधान हैं- वो नाकाफी हैं. ‘बाल यौन शोषण सम्बंधी’ विधेयक, विधि मंत्रालय में ना जाने कब से धुल चाट रहा है.
महिला एवं बाल कल्याण मंत्री कृष्णा तीरथ ने पिछले सत्र में लोकसभा में बताया था कि वर्ष में 2005-2006 और 2007 में बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामलों की संख्या क्रमश: 4026, 4721 और 5045 रही। पिछले साल मध्य प्रदेश में सर्वाधिक 1043 मामले दर्ज किये गये। इसके बाद महाराष्ट्र में 615, उत्तर प्रदेश में 471, राजस्थान में 406, में 398, छत्तीसगढ़ में 368 और आंध्र प्रदेश में 363 ऐसे मामले दर्ज किये गये, जबकि अरुणाचल प्रदेश में एक, नगालैंड में दो, अंडमान निकोबार, दादरा नागर हवेली एवं पुडुचेरी में तीन-तीन और मणिपुर में चार मामले पंजीकृत किए गए। २००८ से २०१० तक के आंकड़े इससे बेहतर नहीं बल्कि निराशाजनक ही सिद्ध होंगे.

आश्चर्येजनक है की हर साल मध्य प्रदेश बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामलों में सर्वप्रथम रहता है. देश की राजधानी दिल्ली भी बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं. बच्चों के यौन शोषण में बढ़ोतरी का (लगभग १२% अधिक) एक मुख्य कारण यह भी है की वे प्रतिरोध नहीं कर पाते. इधर किशोरों द्वारा भी बच्चों के विरुद्ध यौन अपराध के मामले बढ़ रहे हैं जो सचमुच चिंताजनक हैं.
इक्का दुक्के मामलों को छोड़ कर, बच्चियों से बलात्कार और हत्या के संगीन अपराधों में भी, सजाए मौत की बजाये उम्र कैद या दस साल तक कैद की ही सजा सुनाई गयी है. अधिकाँश अपराधी तो संदेह का लाभ पाकर बाइज्जत बरी हो या कर दिए जाते हैं. पुलिस से लेकर अदालत तक पूरी न्याय व्यवस्था अपराधियों के बचाव में ही खड़ी दिखाई देती है. सालों कोर्ट कचहरी करने के बाद पता चलता है की अभियुक्त को इस आधार पर या उस आधार पर छोड़ दिया गया है.कुछ मामलों में तो शाम तक कोर्ट में खड़ा रहने की सजा तक सुनाई गयी है.
नाबालिग लड़के द्वारा लड़की को बहला फुसला कर विवाह (अपहरण और बलात्कार) करने के एक मामले में पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति बी.डी. अहमद और वी. के. जैन ने फैसला सुनाया है कि बाल विवाह गैर कानूनी नहीं है, अपहरण और बलात्कार कि एफ. आई. आर रद्द कि जाती है और लड़का भले ही नाबालिग है मगर हिन्दू कानून के अनुसार अपनी पत्नी का प्राक्रतिक संरक्षक है सो नाबालिग पत्नी के संरक्षण का भार उसे ही दिया जाना चाहिए. यह ऐसा पहला और अंतिम निर्णय नहीं है. इससे पहले के केसों कि लम्बी-चोडी लिस्ट मौजूद है. हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक.
दरअसल स्त्रियों और बच्चों की सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता में कहीं दिखाई नहीं दे रही.समाज से संसद तक इन गंभीर मुद्दों पर चुप्पी का षड्यन्त्र पसरा हुआ हैं। बाल अधिकारों पर समुचित कानून बनाने से लेकर उनके क्रियान्वन तक कि फूलप्रूफ नीतियाँ और संस्थान स्थापित करने पर गंभीरता से विचार करना होगा. शिक्षा के संवैधानिक अधिकारों के नीचे पुख्ता जमीन तैयार किये बिना बाल यौन शोषण रोकना असंभव है. समय कि मांग है कि संसद शिघ्र ही भ्रूण हत्या से बाल विवाह कानून तक में आमूल-चूल संशोधन करे, इस से पहले कि बहुत देर हो जाये.

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